दूत महाराज...
जब संकट-ग्रस्त रोगी को पेशी आती है तो वह झूमने लग जाता है स्वतः ही भूत/संकट
उस के शरीर में आकर बोलने लगता है, विचित्र क्रियाएं करने लगता है, कभी रोता है, कभी
हंसता है तो कभी ऊछल-कूद मचाता हुआ हाहाकार करता है, भागने की कोशिश करता है. श्री बालाजी की मार से तंग आकर, या ईमानदारी से जो संकट श्री बालाजी के चरणों में बैठ
जाता है उसे श्री बालाजी अपना दूत बना लेतें हैं.
संकट कटने पर अपनी रक्षा के लिए दूत मिलने के लिए एक दरख्वास्त लगा कर श्री बालाजी
से प्रार्थना करनी चाहिए कि एक शक्तिशाली दूत सदैव हमारी रक्षा करने के लिए दें, यदि दूत
मिल जाता है तो नियमों का पालन करना बहुत जरुरी होता है.
पहले के जमाने में हर दूत महाराज का कोई एक नम्बर होता था, नम्बर ही इन की पह्चान होती थी. पुराने पुराने दूत महाराज आज भी नम्बर से पहचाने जाते हैं.
दूत महाराज को मंगलवार, शनिवार या मुसीबत के समय ही बुलाना चाहिए.
॥ जय श्री राम ॥